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लेखनी कहानी -04-Sep-2022 प्रतियोगिता के लिए

दिल के रिश्ते

मम्मी आप चारु को कुछ रोकती क्यों नहीं? दिन भर दादी-दादी कहते हुए यहीं रहती है पड़ोसी है परन्तु यही टिकी रहती है आपने ही उसकी आदत खराब कर रखी है। सुबह नाश्ते का समय हो या शाम के हमेशा यहीं रहती है  हर चीज छूती रहती है।आन्टी क्या बना रही हैं, आन्टी इससे खेल लूँ,आंटी टीवी चला लू और चला देती है। कल शाम को पीहू से झगड़ रही थीं की आपके पास वही बैठेगी ,मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा ।अरे पड़ोसी है पड़ोसी की तरह रहे खुद को पीहू के बराबर ना समझे । आखिर ये उसके दादा-दादी का घर है ।

सुनीता जी मुस्कुराते ने मुस्कुराते हुए अपनी बहू रोली को निहारा ।उन्हें अच्छा लगा की आज उनकी बहू इतने सालो बाद उनपर अपना हक जमा रही है नहीं तो पिछले दस सालों से तो बस होली दिवाली ही आया करती थी वो भी २-४ दिन के लिए और वापस अपनी दुनिया में लौट जाया करती थी। यहाँ आती भी थी तो बातें कहाँ होती थी? बस घूमना फिरना ,दोस्त रिश्तेदार, बच्चो की फरमाइश और सारा टाइम छू मंतर । 
सुनीता थोड़ी देर बाद अपनी बहू रोली के पास जाती हैं और पूछा बेटा एक बात बता - घर किसे कहते हैं? 
रोली इस सवाल से कुछ सकपका सी गयी। कुछ बोलने को हुयी कि तभी सुनीता जी बोली, "बेटा मैं अब पैंसठ साल की हो चुकी हूँ।
 जिंदगी की छोटी छोटी खुशियों को बटोरने में लगी हुई हूँ। मैं जानती हूं तुम बेटा और बच्चे सब मुझे बहुत प्यार करते हो ।और मेरी फिक्र करते हो। 
 तुम लोग परसों जाने वाले हो ,और मुझे उसमें कोई प्राब्लम भी नहीं है लेकिन ये याद रखो की तुम्हारे जाने के बाद भी चारु यहीं रहेगी और मेरा ख्याल रखेगी, मुझे खुशी के हजारों पल देगी । 
   वो भी मेरी पोती समान ही है। अगर वो इस घर में अधिकार से रहती है तो वो हक मैंने उसको दिया है। 
   आगे से कुछ भी बोलने से पहले सोचना घर ईंटों से बनता है परंतु बनता है हमारे रहने के लिए। और होता है प्रेम से जिंदगी जीने के लिए।


       स्वरचित एवं मौलिक रचना

        अनुराधा प्रियदर्शिनी
       प्रयागराज उत्तर प्रदेश

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4 Comments

Reena yadav

05-Sep-2022 02:00 PM

आपने एक ही कहानी दो बार पोस्ट की है, एक को हटा दे🙏

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Achha likha hai 💐🙏

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Raziya bano

05-Sep-2022 09:35 AM

बहुत खूब

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